Thursday, November 22, 2018

रिसेप्शन में अकेले फोटो खिंचवाने से रणवीर का इंकार, ये है वजह

बेंगलुरु में बुधवार को दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की ग्रैंड वेडिंग रिसेप्शन पार्टी हुई. न्यूलीमैरिड कपल रॉयल लुक में नजर आया. पार्टी में सिर्फ करीबी रिश्तेदार ही शामिल हुए. सभी ने दीपिका-रणवीर को शादी की बधाई दी. दीपवीर के पहले वेडिंग रिसेप्शन की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं.

जैसे ही स्टेज पर दीपिका और रणवीर ने एंट्री की, मीडिया में दोनों की तस्वीरें लेने की होड़ मच गई. इस दौरान दोनों को जब कुछ फोटोग्राफर्स ने सिंगल फोटो के लिए रिक्वेस्ट की. तो रणवीर ने बिल्कुल मना कर दिया. चलिए बताते हैं इसकी असली वजह.

रणवीर ने फोटोग्राफर्स को सोलो फोटो के लिए मना करते हुए कहा, ''मियां बीवी साथ हैं, तो फोटो अलग क्यों?'' स्पॉटबॉय के सूत्रों के मुताबिक, रणवीर एकदम स्पष्ट थे कि वे सोलो पिक्चर्स नहीं देंगे.

मीडिया को पोज देने के दौरान दोनों की केमिस्ट्री साफ नजर आई. दोनों साथ में परफेक्ट कपल लग रहे थे. एक मौके पर जब रणवीर और दीपिका स्टेज पर थे, तब दीपिका की साड़ी उलझने लगी, इसके बाद रणवीर ने आगे आकर इसे ठीक किया. तब स्टेज पर खड़ी दीपिका ने पति रणवीर को फ्लाइंग किस दी.

गौरतलब है कि दीपिका-रणवीर की 14-15 नवंबर को इटली के लेक कोमो में हुई थी. बेंगलुरु के बाद कपल 28 नवंबर और 1 दिसंबर को मुंबई में रिसेप्शन देगा. 1 दिसंबर को होने वाली पार्टी में बॉलीवुड सेलेब्स नजर आएंगे. वहीं दोनों 24 नंवबर को रणवीर की बहन रितिका की पार्टी अटेंड करेंगे. रितिका ने दोनों के लिए स्पेशल डिनर पार्टी ऑर्गेनाइज की है.

दीपवीर के 1 दिसंबर को होने वाले तीसरे रिसेप्शन का कार्ड भी सामने आ गया है. इसे एक्ट्रेस मनीषा कोईराला ने शेयर किया है. इस कार्ड पर लिखा है, कृपया हमारी शादी को सेलिब्रेट करने के लिए पधारे. ये रिसेप्शन ग्रैंड हयात मुंबई में 9 बजे से होगा. इसका ड्रेस कोड ब्लैक टाई रखा गया है.

जम्मू कश्मीर के बीजेपी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री कवींद्र गुप्ता पीडीपी, एनसी और कांग्रेस के गठबंधन पर गंभीर इल्जाम लगाया है. गुप्ता का आरोप है कि बीजेपी को सरकार बनाने से दूर रखने के लिए दुबई में साजिश रची गई है, जो पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित है. उन्होंने कहा कि अगर राज्य में इन तीनों दलों के गठबंधन की सरकार बनती है तो यह जनता के साथ विश्वासघात होगा.         


जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 89 सीटे हैं, जिनमें से दो सदस्य मनोनीत किए जाते हैं. ऐसी स्थिति में सरकार बनाने के लिए 44 विधायकों की जरूरत होती है. मौजूदा स्थिति में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के पास 28, बीजेपी के 25 और नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास 15 और कांग्रेस के पास 12 सीटे हैं. यानी अगर पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस एक साथ आते हैं तो आंकड़ा 55 तक पहुंच रहा है और आसानी से सरकार का गठन किया जा सकता है.

Monday, November 12, 2018

बीजेपी राज में अयोध्या बने फ़ैज़ाबाद का इतिहास

बिना भेद-भाव का काम करने का डंका पीटने वाली उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फ़ैज़ाबाद ज़िले का नाम बदलकर 'अयोध्या' कर दिया है. इस प्रकार फ़ैज़ाबाद जो अपनी गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए जाना जाता था अतीत में चला गया है.

फ़ैज़ाबाद नवाबों द्वारा बसाया गया शहर था. यह अवध के नवाबों की पहली राजधानी थी जिसमें अयोध्या की भी अपनी शानो-शौक़त थी. दोनों शहर दो संस्कृतियों, स्थापत्य कला, साहित्य, संगीत, परम्परा को समेटे हुए जी रहे थे. किसी को किसी से न कोई शिक़वा थी, न शिकायत. दोनों शहरों की अपनी कहानी थी, अपनी ज़ुबानी थी.

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्ज़िद जैसी स्थानीय समस्या के अन्तरराष्ट्रीय बन जाने के बावजूद साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में इन दोनों नगरों की गिनती थी. इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो प्यार मोहब्बत की मिसाल रहे हैं ये शहर.

फ़ैज़ाबाद, राजनीति चिन्तक एवं विचारक आचार्य नरेन्द्र देव और डॉक्टर राममनोहर लोहिया की भूमि रही है. साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर कुंवर नारायण, साहित्यकार और आलोचक डॉक्टर विजय बहादुर सिंह, हिन्दी उर्दू के विद्वान अनवर जलालपुरी, कविता के हस्ताक्षर शलभ श्रीराम सिंह, संगीत और कला के क्षेत्र में ठुमरी गायिका बेग़म अख़्तर, पखावज का अवधी घराना स्थापित करने वाले बाबा पागलदास, उर्दू के शायर मीर अनीस, मीर गुलाम हसन, ख़्वाजा हैदर अली आतिश, पंडित ब्रजनारायण चकबस्त, मजाज़ लखनवी, मेराज़ फ़ैज़ाबादी आदि कितने ही नाम लिए जाएं जो फ़ैज़ाबाद की ही धरोहर हैं. खेल के क्षेत्र में अन्तरराष्ट्रीय मुक्केबाज़ अखिल कुमार भी इसी फ़ैज़ाबाद की धरती पर पैदा हुए.

1857 की क्रांति के दूत मंगल पाण्डेय फ़ैज़ाबाद के थे. बाबा रामचन्द्र का किसान आन्दोलन यहीं शुरू हुआ था. मौलवी अहमदउल्ला शाह उर्फ़ डंका शाह ने अवध के विलय के बाद भी फै़ज़ाबाद को आज़ाद रखा था. देश की आज़ादी के लिए काकोरी केस के अशफ़ाक़ उल्ला खां की शहादत फै़ज़ाबाद जेल में हुई, जहां फांसी के दिन प्रतिवर्ष 19 दिसम्बर को एक बड़ा जलसा होता है.

पत्रकारिता की दुनिया में पत्रकारों एवं कर्मचारियों की सहकारिता के आधार पर फै़ज़ाबाद में एक नया प्रयोग जनमोर्चा 1958 में आरम्भ हुआ था, जो आज भी संचालित हो रहा है जिसके मुख्य संस्थापक महात्मा हरगोविन्द थे.

योगी आदित्यनाथ ने फ़ैज़ाबाद का नाम अयोध्या किया
फै़ज़ाबाद का इतिहास

दिल्ली के शहंशाह के दरबार से अवध का सूबेदार नियुक्त होने के बाद नवाब सआदत अली खां (शासनकाल 1722-1739) ने अयोध्या में ही अपना आशियाना बनाया, जहां से वे शासन प्रबन्ध करते थे.

यह आशियाना सरयू नदी के तट पर और टीलेनुमा ऊंचाई पर था जिसे 'किला मुबारक' के नाम से जाना जाता था. उन्होंने अयोध्या के बाहरी इलाक़े में नदी के किनारे एक कच्ची मिट्टी की दीवार की किलेनुमा घेरेबन्दी का अहाता अपने सैनिकों के लिए बनवाया जहां वे स्वयं भी रहने लगे.